Friday, October 13, 2017

किसी का क्या बिगड़ जाता - नज़्म

किसी का क्या बिगड़ जाता
अगर हम एक हो जाते
हमेशा की तरह सूरज तुलू मशरिक़ से ही होता
हमेशा की तरह रातों में तारे जगमगाते और
बहारों में गुल ओ बुलबुल महकते, चहचहाते हाँ
किसी का क्या बिगड़ जाता
किसी का क्या बिगड़ जाता

न मैं फिरता यक ओ तन्हा
न तुम गुमसुम रहा करतीं
न जीवन में कमी रहती
न आंखों में नमी रहती
न मौसम रूठते हमसे
न रोज़ ओ शब गराँ होते
गुज़रते पल यूँ हैरत से हमें देखा नहीं करते
अगर हम एक हो जाते

अगर हम एक हो जाते
तो रूहों में बसी है जो
अज़ल की प्यास न रहती
ख़लिश सी ज़िंदगी में फिर
पस ए एहसास न रहती
कोई हसरत नहीं रहती
कोई भी आस न रहती
उदासी यास न रहती

किसी का क्या बिगड़ जाता
अगर हम एक हो जाते

No comments:

Post a Comment