किसी का क्या बिगड़ जाता
अगर हम एक हो जाते
हमेशा की तरह सूरज तुलू मशरिक़ से ही होता
हमेशा की तरह रातों में तारे जगमगाते और
बहारों में गुल ओ बुलबुल महकते, चहचहाते हाँ
किसी का क्या बिगड़ जाता
किसी का क्या बिगड़ जाता
न मैं फिरता यक ओ तन्हा
न तुम गुमसुम रहा करतीं
न जीवन में कमी रहती
न आंखों में नमी रहती
न मौसम रूठते हमसे
न रोज़ ओ शब गराँ होते
गुज़रते पल यूँ हैरत से हमें देखा नहीं करते
अगर हम एक हो जाते
अगर हम एक हो जाते
तो रूहों में बसी है जो
अज़ल की प्यास न रहती
ख़लिश सी ज़िंदगी में फिर
पस ए एहसास न रहती
कोई हसरत नहीं रहती
कोई भी आस न रहती
उदासी यास न रहती
किसी का क्या बिगड़ जाता
अगर हम एक हो जाते
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