Monday, October 16, 2017

उसकी बातें उदास कर देंगी

अपनी तन्हाईयों से पूछा है
शब ए हिज्रां से बात कर ली है
मेरे अंदर की सहमी ख़ामोशी
मेरे बाहर का हँसता चेहरा भी
रात के सनसनाते लम्हें भी
दिन का डसता हुआ उजाला भी
ज़ब्त का टूटता ये बंधन भी
सब्र का छूटता ये दामन भी
उसकी यादें भी कुछ इशारों में
मुझको मजबूर कर रहे हैं सब
आओ सब उसके पास चलते हैं
उससे कहते हैं कुछ दवा कर दो
अपनी फ़ितरत को छोड़ कर इक पल
कोई वादा तो तुम वफ़ा कर दो
इनकी बातों से कुछ नहीं होगा
आख़िरी फ़ैसला तो दिल का है
दिल ये कहता है उससे मिलने से
अपनी तन्हाईयाँ ही अच्छी हैं
अब अकेले में लग गया है दिल
उससे मिलने हमें नहीं जाना
उसकी बातें उदास कर देंगी

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