Friday, October 13, 2017

आबला - अमजद इस्लाम अमजद

उदासी के उफ़ुक़ पर जब तुम्हारी याद के जुगनू चमकते हैं
तो मेरी रूह पर रक्खा हुआ ये हिज्र का पत्थर
चमकती बर्फ़ की सूरत पिघलता है
अगरचे यूँ पिघलने से ये पत्थर संगरेज़ा तो नहीं बनता
मगर इक हौसला सा दिल को होता है
कि जैसे सर ब सर तारीक शब में भी
अगर इक ज़र्दरू सहमा हुआ तारा निकल आए
तो क़ातिल रात का बेइस्म जादू टूट जाता है
मुसाफ़िर के सफ़र का रास्ता तो कम नहीं होता
मगर तारे की चिलमन से
कोई भूला हुआ मंज़र अचानक जगमगाता है
सुलगते पाँव में इक आबला सा फूट जाता है

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