Wednesday, February 7, 2018

बहुत करीब हो तुम - अली सरदार जाफ़री

बहुत क़रीब हो तुम फिर भी मुझ से कितनी दूर
कि दिल कहीं है नज़र है कहीं कहीं तुम हो
वो जिस को पी न सकी मेरी शोलाआशामी
वो कूज़ा ए शकर ओ जाम ए अम्बगीं तुम हो
मेरे मिज़ाज में आशुफ़्तगी सबा की है
मिली कली की अदा, गुल की तमकनत तुम को
सबा की गोद में फिर भी सबा से बेगाना
तमाम हुस्न ओ हक़ीक़त तमाम अफ़्साना
वफ़ा भी जिस पे है नाज़ाँ वो बेवफ़ा तुम हो
जो खो गई है मेरे दिल की वो सदा तुम हो

बहुत क़रीब हो तुम फिर भी मुझ से कितनी दूर
हिजाब ए जिस्म अभी है हिजाब ए रूह अभी
अभी तो मंज़िल ए सद मेहर ओ माह बाक़ी है
हिजाब ए फ़ासला हा ए निगाह बाक़ी है
विसाल ए यार अभी तक है आरज़ू का फ़रेब

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