Saturday, September 9, 2017

तुम नहीं आए थे जब - अली सरदार जाफ़री

तुम नहीं आए थे जब तब भी तो मौजूद थे तुम
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
दर्द की लौ की तरह प्यार की ख़ुश्बू की तरह
बेवफ़ा वादों की दिलदारी का अंदाज़ लिए

तुम नहीं आए थे जब तब भी तो तुम आए थे
रात के सीने में महताब के ख़ंजर की तरह
सुब्ह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
शाख़ ए ख़ूँरंग ए तमन्ना में गुल ए तर की तरह

तुम नहीं आओगे जब तब भी तो तुम आओगे
याद की तरह धड़कते हुए दिल की सूरत
ग़म के पैमाना ए सरशार को छलकाते हुए
बर्ग हा ए लब ओ रुख़्सार को महकाते हुए
दिल के बुझते हुए अँगारे को दहकाते हुए
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा फिर रात का रंग
शब ए तन्हाई में भी लुत्फ़ ए मुलाक़ात का रंग
रोज़ लाएगी सबा कू ए सबाहत से पयाम
रोज़ गाएगी सहर तहनियत ए जश्न ए फ़िराक़

आओ आने की करें बातें कि तुम आए हो
अब तुम आए हो तो मैं कौन सी शय नज़्र करुँ
कि मेरे पास बजुज़ मेहर ओ वफ़ा कुछ भी नहीं
एक ख़ूँगश्ता तमन्ना के सिवा कुछ भी नहीं

2 comments:

  1. अजल से याद तो पुरबाई की ही है और किसकी? वो था सरापा नूर,है, और रहेगा! जब कुछ भी नथा,तबभी वह था!
    सृष्टि के बाद आदमी केआँखों का नूर बन उतरता है ,कभी
    प्रात: सूर्य की प्रभावों सा अरुणिम-लहू के रंग की तरहा लाल
    ((हृत पुंडरीकमध्यस्यताम् प्रात:सूर्यसमप्रभाम् ) । दर्द ,इश्क,प्रेम
    वफ़ा ,दर्द,तन्हाई ,ख़ुशबू ,फ़िराक़ ,महताब,ख़ुर्शीद,ग़म,उफनती
    यादों के तरन्नुम,सभी सालते है ! फ़िज़ाओं में भी दर्द है; रात आविष्ट और अभिशप्त रंगों की बरसात में भींगी है! सूरत की गलियों से मलयानिल पयाम लाएगा, रुखसारों के दमकने और दहकने का ! सुब्ह प्रशंसा के तानेबाने बुनेगी- वियोग की रात के उत्सव का ,क्योंकि मुलाक़ात की रहमत उतरी है प्रेय का पदार्पण हुआ है ! महबूब आया है । यादों में, ख़यालों में।
    प्रसन्नता का पारावार नहीं है ! प्रतिदान क्या होगा? समस्या है-भेंट क्या दूँगा? कुछ तो है नहीं ,एक खूँगश्ता तमन्ना के सिवा !

    भाव और भाषा के बेहतरीन प्रयोगों से लबरेज़ नज़्म !
    इतनी बेहतरीन इंतिखाब के लिए हार्दिक बधाई !💐☘️🌹🙏

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  2. वाहःहः बहुत ही खूबसूरत ।
    क्या कहने , बेहतरीन।

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