Friday, September 29, 2017

नज़्म - अली सरदार जाफ़री

मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़्सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरनों का सुनहरी ज़ेवर
तुम ही तन्हा मेरे ग़मख़ाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रक्खा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
दिल ए ख़ूँगश्ता का हँसता हुआ ख़ुशरंग गुलाब

Friday, September 15, 2017

नज़्म - अहमद फ़राज़

ये तेरी आँखों की बेज़ारी ये लहजे की थकन
कितने अंदेशों की हामिल हैं ये दिल की धड़कनें
पेशतर इसके कि हम फिर से मुख़ालिफ़ सम्त को
बे ख़ुदाहाफ़िज़ कहे चल दें झुका कर गर्दनें
आओ उस दुख को पुकारें जिस की शिद्दत ने हमें
इस क़दर इक दूसरे के ग़म से वाबस्ता किया
वो जो तन्हाई का दुख था तल्ख़ महरूमी का दुख
जिस ने हम को दर्द के रिश्ते में पैवस्ता किया
वो जो इस ग़म से ज़ियादा जाँगुसिल क़ातिल रहा
वो जो इक सैल ए बलाअंगेज़ था अपने लिए
जिस के पल पल में थे सदियों के समुंदर मौजज़न
चीख़ती यादें लिए उजड़े हुए सपने लिए
मैं भी नाकाम ए वफ़ा था तो भी महरूम ए मुराद
हम ये समझे थे कि दर्द ए मुश्तरक रास आ गया
तेरी खोई मुस्कुराहट क़हक़हों में ढल गई
मेरा गुमगश्ता सुकूँ फिर से मिरे पास आ गया
तपती दोपहरों में आसूदा हुए बाज़ू मेरे
तेरी ज़ुल्फ़ें इस तरह बिखरीं घटाएँ हो गईं
तेरा बर्फ़ीला बदन बेसाख़्ता लौ दे उठा
मेरी साँसें शाम की भीगी हवाएँ हो गईं
ज़िंदगी की साअतें रौशन थीं शम्ओं की तरह
जिस तरह से शाम गुज़रे जुगनुओं के शहर में
जिस तरह महताब की वादी में दो साए रवाँ
जिस तरह घुंघरू छनक उट्ठें नशे की लहर में
आओ ये सोचें भी क़ातिल हैं तो बेहतर है यही
फिर से हम अपने पुराने ज़हर को अमृत कहें
तू अगर चाहे तो हम इक दूसरे को छोड़ कर
अपने अपने बेवफ़ाओं के लिए रोते रहें

Saturday, September 9, 2017

तुम नहीं आए थे जब - अली सरदार जाफ़री

तुम नहीं आए थे जब तब भी तो मौजूद थे तुम
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
दर्द की लौ की तरह प्यार की ख़ुश्बू की तरह
बेवफ़ा वादों की दिलदारी का अंदाज़ लिए

तुम नहीं आए थे जब तब भी तो तुम आए थे
रात के सीने में महताब के ख़ंजर की तरह
सुब्ह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
शाख़ ए ख़ूँरंग ए तमन्ना में गुल ए तर की तरह

तुम नहीं आओगे जब तब भी तो तुम आओगे
याद की तरह धड़कते हुए दिल की सूरत
ग़म के पैमाना ए सरशार को छलकाते हुए
बर्ग हा ए लब ओ रुख़्सार को महकाते हुए
दिल के बुझते हुए अँगारे को दहकाते हुए
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जाएगा फिर रात का रंग
शब ए तन्हाई में भी लुत्फ़ ए मुलाक़ात का रंग
रोज़ लाएगी सबा कू ए सबाहत से पयाम
रोज़ गाएगी सहर तहनियत ए जश्न ए फ़िराक़

आओ आने की करें बातें कि तुम आए हो
अब तुम आए हो तो मैं कौन सी शय नज़्र करुँ
कि मेरे पास बजुज़ मेहर ओ वफ़ा कुछ भी नहीं
एक ख़ूँगश्ता तमन्ना के सिवा कुछ भी नहीं

Thursday, September 7, 2017

ओ देस से आने वाले बता - अख़्तर शीरानी

ओ देस से आने वाले बता
किस हाल में हैं यारान ए वतन
आवारा ए ग़ुर्बत को भी सुना किस रंग में है कनआन ए वतन
वो बाग़ ए वतन फ़िरदौस ए वतन वो सर्व ए वतन रेहान ए वतन
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ के बाग़ों में मस्ताना हवाएँ आती हैं
क्या अब भी वहाँ के पर्बत पर घनघोर घटाएँ छाती हैं
क्या अब भी वहाँ की बरखाएँ वैसे ही दिलों को भाती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्त नज़ारे होते हैं
क्या अब भी सुहानी रातों को वो चाँद सितारे होते हैं
हम खेल जो खेला करते थे क्या अब वही सारे होते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी शफ़क़ के सायों में दिन रात के दामन मिलते हैं
क्या अब भी चमन में वैसे ही ख़ुशरंग शगूफ़े खिलते हैं
बरसाती हवा की लहरों से भीगे हुए पौदे हिलते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
शादाब ओ शगुफ़्ता फूलों से मामूर हैं गुलज़ार अब कि नहीं
बाज़ार में मालन लाती है फूलों के गुँधे हार अब कि नहीं
और शौक़ से टूटे पड़ते हैं नौउम्र ख़रीदार अब कि नहीं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या शाम पड़े गलियों में वही दिलचस्प अँधेरा होता है
और सड़कों की धुँदली शम्ओं पर सायों का बसेरा होता है
बाग़ों की घनेरी शाख़ों में जिस तरह सवेरा होता है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ वैसी ही जवाँ और मदभरी रातें होती हैं
क्या रात भर अब भी गीतों की और प्यार की बातें होती हैं
वो हुस्न के जादू चलते हैं वो इश्क़ की घातें होती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
मीरानियों के आग़ोश में है आबाद वो बाज़ार अब कि नहीं
तलवारें बग़ल में दाबे हुए फिरते हैं तरहदार अब कि नहीं
और बहलियों में से झाँकते हैं तुर्कान ए सियहकार अब कि नहीं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी महकते मंदिर से नाक़ूस की आवाज़ आती है
क्या अब भी मुक़द्दस मस्जिद पर मस्ताना अज़ाँ थर्राती है
और शाम के रंगीं सायों पर अज़मत की झलक छा जाती है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाला बता
क्या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं
अंगड़ाई का नक़्शा बन बन कर सब माथे पे गागर धरती हैं
और अपने घरों को जाते हुए हँसती हुई चुहलें करती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
बरसात के मौसम अब भी वहाँ वैसे ही सुहाने होते हैं
क्या अब भी वहाँ के बाग़ों में झूले और गाने होते हैं
और दूर कहीं कुछ देखते ही नौउम्र दीवाने होते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी पहाड़ी चोटियों पर बरसात के बादल छाते हैं
क्या अब भी हवा ए साहिल के वो रस भरे झोंके आते हैं
और सब से ऊँची टीकरी पर लोग अब भी तराने गाते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी पहाड़ी घाटियों में घनघोर घटाएँ गूँजती हैं
साहिल के घनेरे पेड़ों में बरखा की हवाएँ गूँजती हैं
झींगुर के तराने जागते हैं मोरों की सदाएँ गूँजती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ मेलों में वही बरसात का जौबन होता है
फैले हुए बड़ की शाख़ों में झूलों का नशेमन होता है
उमडे हुए बादल होते हैं छाया हुआ सावन होता है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या शहर के गिर्द अब भी है रवाँ दरिया ए हसीं लहराए हुए
जूँ गोद में अपने मन को लिए नागिन हो कोई थर्राए हुए
या नूर की हँसली हूर की गर्दन में हो अयाँ बल खाए हुए
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ बरसात के दिन बाग़ों में बहारें आती हैं
मासूम ओ हसीं दोशीज़ाएँ बरखा के तराने गाती हैं
और तीतरियों की तरह से रंगीं झूलों पर लहराती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी उफ़क़ के सीने पर शादाब घटाएँ झूमती हैं
दरिया के किनारे बाग़ों में मस्ताना हवाएँ झूमती हैं
और उन के नशीले झोंकों से ख़ामोश फ़ज़ाएँ झूमती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या शाम को अब भी जाते हैं अहबाब कनार ए दरिया पर
वो पेड़ घनेरे अब भी हैं शादाब कनार ए दरिया पर
और प्यार से आ कर झाँकता है महताब कनार ए दरिया पर
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या आम के ऊँचे पेड़ों पर अब भी वो पपीहे बोलते हैं
शाख़ों के हरीरी पर्दों में नग़्मों के ख़ज़ाने घोलते हैं
सावन के रसीले गीतों से तालाब में अमरस घोलते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या पहली सी है मासूम अभी वो मदरसे की शादाब फ़ज़ा
कुछ भूले हुए दिन गुज़रे हैं जिस में वो मिसाल ए ख़्वाब फ़ज़ा
वो खेल वो हमसिन वो मैदाँ वो ख़्वाबगह ए महताब फ़ज़ा
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी किसी के सीने में बाक़ी है हमारी चाह बता
क्या याद हमें भी करता है अब यारों में कोई आह बता
ओ देस से आने वाले बता लिल्लाह बता लिल्लाह बता
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या हम को वतन के बाग़ों की मस्ताना फ़ज़ाएँ भूल गईं
बरखा की बहारें भूल गईं सावन की घटाएँ भूल गईं
दरिया के किनारे भूल गए जंगल की हवाएँ भूल गईं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या गाँव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं
देहात की कमसिन माहवशें तालाब की जानिब जाती हैं
और चाँद की सादा रौशनी में रंगीन तराने गाती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी गजरदम चरवाहे रेवड़ को चुराने जाते हैं
और शाम के धुँदले सायों के हमराह घरों को आते हैं
और अपनी रसीली बांसुरियों में इश्क़ के नग़्मे गाते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या गाँव पे अब भी सावन में बरखा की बहारें छाती हैं
मासूम घरों से भोर भये चक्की की सदाएँ आती हैं
और याद में अपने मैके की बिछड़ी हुई सखियाँ गाती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
दरिया का वो ख़्वाबआलूदा सा घाट और उस की फ़ज़ाएँ कैसी हैं
वो गाँव वो मंज़र वो तालाब और उस की हवाएँ कैसी हैं
वो खेत वो जंगल वो चिड़ियाँ और उन की सदाएँ कैसी हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी पुराने खंडरों पर तारीख़ की इबरत तारी है
अन्नपूर्णा के उजड़े मंदिर पर मायूसी ओ हसरत तारी है
सुनसान घरों पर छावनी के वीरानी ओ रिक़्क़त तारी है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
आख़िर में ये हसरत है कि बता वो ग़ारत ए ईमाँ कैसी है
बचपन में जो आफ़त ढाती थी वो आफ़त ए दौराँ कैसी है
हम दोनों थे जिस के परवाने वो शम ए शबिस्ताँ कैसी है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
मरजाना था जिस का नाम बता वो ग़ुंचादहन किस हाल में है
जिस पर थे फ़िदा तिफ़्लान ए वतन वो जान ए वतन किस हाल में है
वो सर्व ए चमन वो रश्क ए समन वो सीमबदन किस हाल में है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी रुख़ ए गुलरंग पे वो जन्नत के नज़ारे रौशन हैं
क्या अब भी रसीली आँखों में सावन के सितारे रौशन हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी शहाबी आरिज़ पर गेसू ए सियह बिल खाते हैं
या बहर ए शफ़क़ की मौजों पर दो नाग पड़े लहराते हैं
और जिन की झलक से सावन की रातों के सपने आते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
अब नाम ए ख़ुदा होगी वो जवाँ मैके में है या ससुराल गई
दोशीज़ा है या आफ़त में उसे कमबख़्त जवानी डाल गई
घर पर ही रही या घर से गई ख़ुशहाल रही ख़ुशहाल गई
ओ देस से आने वाले बता