Sunday, May 21, 2017

इन्तज़ार - मख़्दूम मोहिउद्दीन

रात भर दीद ए नमनाक में लहराते रहे
सांस की तरह से आप आते रहे जाते रहे

ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
अपना अरमान बर अफगन्दा नक़ाब आएगा
नज़रें नीची किए शरमाए हुए आएगा
काकुले चेहरे पे बिखराए हुए आएगा
आ गई थी दिल ए मुज़्तर में शकेबाई सी
बज रही थी मेरे ग़मखाने में शहनाई सी
पत्तियाँ खड़कीं तो समझा कि लो आप आ ही गए
सजदे मसरूर के मसजूद को हम पा ही गए

शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आपके आने की एक आस थी अब जाने लगी
सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई
मेरे महबूब मेरी नींद उड़ाने वाले
मेरे मसजूद मेरी रूह पे छाने वाले
आ भी जा ताकि मेरे सजदों का अरमाँ निकले
आ भी जा ताकि तेरे क़दमो पे मेरी जाँ निकले

3 comments:

  1. क्या कहने बहुत ख़ूबसूरत नज़्म ।
    🌹🌹🌹🌹

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  2. क्या कहने बहुत ख़ूबसूरत नज़्म ।
    🌹🌹🌹🌹

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