Friday, May 12, 2017

तुम्हारे हुस्न के नाम - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सलाम लिखता है शायर तुम्हारे हुस्न के नाम

बिखर गया जो कभी रंग ए पैरहन सर ए बाम
निखर गई है कभी सुबह दोपहर कभी शाम
कहीं जो क़ामत ए ज़ेबा पे सज गई है क़बा
चमन में सर्व ओ सनोबर सँवर गए हैं तमाम
बनी बिसात ए ग़ज़ल जब डुबो लिए दिल ने
तुम्हारे साया ए रुख़सार ओ लब में साग़र ओ जाम
सलाम लिखता है शायर तुम्हारे हुस्न के नाम

तुम्हारे हाथ पे है ताबिश ए हिना जब तक
जहाँ में बाक़ी है दिलदारी ए उरूस ए सुख़न
तुम्हारा हुस्न जवाँ है तो मेहरबाँ है फ़लक
तुम्हारा दम है तो दमसाज़ है हवा ए वतन
अगरचे तंग हैं औक़ात सख़्त हैं आलाम
तुम्हारी याद से शीरीं है तल्ख़ी ए अय्याम
सलाम लिखता है शायर तुम्हारे हुस्न के नाम

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