Sunday, May 28, 2017

ख़त - परवीन शाक़िर

जान से प्यारे
कुछ दिनों से बहुत याद आने लगे हो
तुम्हारा बिछड़ना तो तुम्हारे मिलने से बढ़कर
तुम्हें मेरे नज़दीक लाने लगा है

मैं हर वक़्त ख़ुद को
तुम्हारे जवां बाज़ुओं में पिघलते देखती हूँ
मेरे होंठ अब तक
तुम्हारी मुहब्बत से नम हैं
तुम्हारा ये कहना गलत तो न था कि
मेरे लब तुम्हारे लबों के सबब ही गुलनार हैं

तो ख़ुश हो
अब तो मेरे आईने का भी यही कहना है कि
मैं हर बार बालों में कंघी अधूरी ही कर पाती हूँ
क्या करूँ आख़िर
तुम्हारी मुहब्बत भरी उंगलियाँ रोक लेती हैं मुझको
अब मैं मानती जा रही हूँ
मेरे अंदर की सारी रातें और बाहर के मौसम
तुम्हारे सबब से थे तुम्हारे लिए थे

जवाबन
ख़िजां मुझमें चाहोगे देखना
या कि फ़स्ल ए बहारां
कोई भी फ़ैसला हो तुम्हारा
मंज़ूर है
मगर, जल्द कर दो तो अच्छा है

तुम्हारी, फ़क़त तुम्हारी.... परवीन शाक़िर

Sunday, May 21, 2017

इन्तज़ार - मख़्दूम मोहिउद्दीन

रात भर दीद ए नमनाक में लहराते रहे
सांस की तरह से आप आते रहे जाते रहे

ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
अपना अरमान बर अफगन्दा नक़ाब आएगा
नज़रें नीची किए शरमाए हुए आएगा
काकुले चेहरे पे बिखराए हुए आएगा
आ गई थी दिल ए मुज़्तर में शकेबाई सी
बज रही थी मेरे ग़मखाने में शहनाई सी
पत्तियाँ खड़कीं तो समझा कि लो आप आ ही गए
सजदे मसरूर के मसजूद को हम पा ही गए

शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आपके आने की एक आस थी अब जाने लगी
सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेली आई
मेरे महबूब मेरी नींद उड़ाने वाले
मेरे मसजूद मेरी रूह पे छाने वाले
आ भी जा ताकि मेरे सजदों का अरमाँ निकले
आ भी जा ताकि तेरे क़दमो पे मेरी जाँ निकले

Friday, May 12, 2017

तुम्हारे हुस्न के नाम - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सलाम लिखता है शायर तुम्हारे हुस्न के नाम

बिखर गया जो कभी रंग ए पैरहन सर ए बाम
निखर गई है कभी सुबह दोपहर कभी शाम
कहीं जो क़ामत ए ज़ेबा पे सज गई है क़बा
चमन में सर्व ओ सनोबर सँवर गए हैं तमाम
बनी बिसात ए ग़ज़ल जब डुबो लिए दिल ने
तुम्हारे साया ए रुख़सार ओ लब में साग़र ओ जाम
सलाम लिखता है शायर तुम्हारे हुस्न के नाम

तुम्हारे हाथ पे है ताबिश ए हिना जब तक
जहाँ में बाक़ी है दिलदारी ए उरूस ए सुख़न
तुम्हारा हुस्न जवाँ है तो मेहरबाँ है फ़लक
तुम्हारा दम है तो दमसाज़ है हवा ए वतन
अगरचे तंग हैं औक़ात सख़्त हैं आलाम
तुम्हारी याद से शीरीं है तल्ख़ी ए अय्याम
सलाम लिखता है शायर तुम्हारे हुस्न के नाम