Monday, August 20, 2018

मेरे हमदम मेरे दोस्त - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गर मुझे इसका यक़ीं हो मेरे हमदम मेरे दोस्त
गर मुझे इसका यक़ीं हो कि तेरे दिल की थकन
तेरी आँखों की उदासी तेरे सीने की जलन
मेरी दिलजूई मेरे प्यार से मिट जाएगी
गर मेरा हर्फ़ ए तसल्ली वो दवा हो जिससे
जी उठे फिर तेरा उजड़ा हुआ बेनूर दिमाग़
तेरी पेशानी से ढल जाएँ ये तज़लील के दाग़
तेरी बीमार जवानी को शिफ़ा हो जाए
गर मुझे इस का यक़ीं हो मेरे हमदम मेरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ
मैं तुझे गीत सुनाता रहूँ हल्के शीरीं
आबशारों के बहारों के चमनज़ारों के गीत
आमद ए सुबह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझसे मैं हुस्न ओ मोहब्बत की हिकायात कहूँ
कैसे मग़रूर हसीनाओं के बरफ़ाब से जिस्म
गर्म हाथों की हरारत में पिघल जाते हैं
कैसे इक चेहरे के ठहरे हुए मानूस नुक़ूश
देखते देखते यकलख़्त बदल जाते हैं
किस तरह आरिज़ ए महबूब का शफ़्फ़ाफ़ बिल्लोर
यक ब यक बादा ए अहमर से दहक जाता है
कैसे गुलचीं के लिए झुकती है ख़ुद शाख़ ए गुलाब
किस तरह रात का ऐवान महक जाता है
यूँही गाता रहूँ गाता रहूँ तेरी ख़ातिर
गीत बुनता रहूँ बैठा रहूँ तेरी ख़ातिर
पर मेरे गीत तेरे दुख का मदावा ही नहीं
नग़्मा जर्राह नहीं मूनिस ओ ग़मख़्वार सही
गीत नश्तर तो नहीं मरहम ए आज़ार सही
तेरे आज़ार का चारा नहीं नश्तर के सिवा
और ये सफ़्फ़ाक मसीहा मेरे क़ब्ज़े में नहीं
इस जहाँ के किसी ज़ी-रूह के क़ब्ज़े में नहीं
हाँ मगर तेरे सिवा तेरे सिवा तेरे सिवा

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