Monday, July 24, 2017

अंदेशा - कफ़ील आज़र

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशाँ क्यूँ हो
जगमगाते हुए लम्हों से गुरेज़ाँ क्यूँ हो
उँगलियाँ उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
चूड़ियों पर भी कई तंज़ किए जाएँगे
काँपते हाथों पे भी फ़िक़रे कसे जाएँगे
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो रूही की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों में मेरा ज़िक्र भी ले आएँगे
इन की बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तास्सुर से समझ जाएँगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उन से
मेरे बारे में कोई बात न करना उन से
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

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