Sunday, February 21, 2016

मुहब्बत-- निदा फ़ाज़ली

वो दोनों
बहुत ग़रीब हैं
उनका कोई घर है न ठिकाना
लेकिन छै रोज़ मुसलसल
अलग अलग मकानों में
मेहनत मजदूरी करने के बाद
जब वो
इतवार की शाम को
एक दूसरे से मिलने आते हैं
तो सारे शहर को अमीर बना जाते हैं