Monday, January 25, 2016

रात तामीर करें-- गुलज़ार

एक रात चलो तामीर करें
ख़ामोशी के संगमरमर पर
हम तान के तारीकी सर की
दो शम्में जलाएं जिस्मों की

जब ओस दबे पाँव उतरे
आहट भी न पाये साँसों की
कोहरे की रेशमी खुशबू में
खुशबू की तरह ही लिपटे रहें
और जिस्म के सोंधे परदों में
रूहों की तरह लहराते रहें