एक रात चलो तामीर करें ख़ामोशी के संगमरमर पर हम तान के तारीकी सर की दो शम्में जलाएं जिस्मों की
जब ओस दबे पाँव उतरे आहट भी न पाये साँसों की कोहरे की रेशमी खुशबू में खुशबू की तरह ही लिपटे रहें और जिस्म के सोंधे परदों में रूहों की तरह लहराते रहें